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शॉवर के निचे से साली को पीछे से ठोका shawar ke niche se sali ko pichhe se thoka - SEX KAHANI IN HINDI

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अनेरी ने पिछले साल से ही ब्रा पहनना चालू किया था. उसके बूब्स 28 इंच से भी छोटे थे. लेकिन गांड का उभार बढ़ आया था. मेरी वाइफ सुलोचना की छोटी बहन हे अनेरी. उसकी एज इतनी हे की मासिक स्टार्ट हो गई हे और उसे सेक्स में अच्छा बुरा पता लग गया हे. वैसे मैं उसके प्रति आकर्षित नहीं होता. पर एक दिन दोपहर में मैं जब अपनी बीवी के साथ संभोग कर रहा था. तब मैं उसकी दो नीली आँखों को खिड़की के एक छेद से बारी बारी अन्दर झांकते हुए देखी.
मेरी ये कच्ची उम्र की साली अपनी बहन और जीजा यानी की मुझे चोदते हुए देख रही थी. मैंने देख के भी अनदेखा किया. ऊपर से उस दिन मैंने उसकी बहन को ऐसे चोदा की उसकी सिसकियाँ निकलती रहे. और उसे सेक्स का फुल मजा आये. अनेरी ने एंड तक हम दोनों की चुदाई को देखी और फिर मेरा छुट गया तो वो वहाँ से खिसक ली.
पहले वो मेरे से बहुत मजाक मस्ती करती थी. लेकिन पिछले कुछ वक्त से वो उखड़ी सी रहती थी. मुझे देख के या तो डरती थी या शर्मा जाती थी. मैं भी समझता था की इस उम्र में शरीर में बहुत बदलाव होते हे. मैंने अनेरी को गिफ्ट देना और उसकी दीदी घर पर ना हो तो सेड्युस करना चालू कर दिया था. वो हालांकि ज्यादा टाइम वो ऐसा नहीं होने देती थी की हम दोनों घर में अकेले हो. अरे हां मैं बोलना भूल गया की वो अपनी पढ़ाई की वजह से हमारे साथ में रहती हे. उसके माँ बाप यानी की मेरे सास ससुर गाँव में हे. बहन जीजा इसी शहर में हे तो तू उन्के घर ही रह ले ऐसा उसे कहा गया था. और  मेरे ससुर जी मुझे हर महीने उसकी खर्ची देते थे.
फिर एक दिन मैं और अनेरी घर पर अकेले थे. मेरी वाइफ अपने लिए शोपिंग करने के लिए गई थी. अनेरी सोफे के ऊपर बैठी हुई थी टीवी देखने के लिए. मैं उसके पास में ही बैठ गया. उसने मुझे देखा और वो जाने लगी. लेकिन उसका हाथ पकड़ के मैंने उसे बिठा दिया वापस और कहा, कहाँ भागती हो?
वो बोली, जीजू कुछ काम याद आ गया.
मैंने कहा, फिर कर लेना.
वो बैठी. मैंने अपनी जांघो को उसकी जांघो से लगा दिया था. वो काँप सी रही थी. उसका ध्यान टीवी में नहीं था. ना ही मेरा! मेरा लंड पेंट में मोंस्टर बन रहा था. वो जोर जोर से साँसे ले रही थी. और फिर वो भाग खड़ी हुई वहाँ से. मेरा लंड धरा का धरा रह गया. मैंने सोचा की साली के अन्दर वासना की आग को पूरी तरह से भडकाना पड़ेगा. उसी शाम को मैं रेलवे स्टेशन पर गया. वहां पर बुक वाले से गरमा गरम कहानियो की बुक माँगा  उसने मुझे पोर्न फोटोस की और चुदाई की कहानियाओं की एक किताब मस्ताराम की दिखाई. शर्मीली भाभी नाम की किरदार कैसे अलग अलग लोगों के लंड लेती हे उसकी कहानियाँ थी उसके अन्दर. मैंने फट फट पेज बदले तो उसका और उसके जीजा का भी एक चेप्टर था. मैंने किताब खरीदी और फिर घर आ गया.
फीर मैंने जीजा साली के काण्ड के चेप्टर में अनेरी, आई लव यु और अनेरी इस वेरी सेक्सी वगेरह अपने पेन से लिखा. कहानियाँ पढ़ी तो वो सब की सब मसालेवाली थी और लंड खड़ा हो गया मेरा. मैं जानता था की अनेरी इसे पढेगी तो उसकी चूत में भी आग लगेगी.
अब मुझे इन्तजार था बीवी के कही जाने का. और वो दिन पुरे महीने के बाद आया. बीवी को ऑफिस में से दो दिन के लिए जाना था. मैंने अपनी ऑफिस की मीटिंग का बहाना बताया और नहीं गया. बीवी के जाने के बाद मैंने शर्मीली भाभी की किताब निकाली और उसे अनेरी के रूम में चुपके से रख आया. मोएँ ऑफिस से जल्दी आ गया वापस अनेरी के कोलेज के आने से पहले ही. फिर मैं एक बरमूडा पहन के बैठा और अन्दर मैंने कुछ नहीं पहना था. अनेरी आई और वो कमरे में गई. मैंने किताब ऐसी रखी थी की उसकी नजर फट से पड़े उसके ऊपर.
अनेरी के कमरे की विंडो ससे छिप के देखा तो वो किताब के पन्ने फेरने लगी. शायद उसने थोडा बहुत पढ़ा भी. फिर शायद उसकी नजर अनेरी आई लव यु वगेरह के ऊपर पड़ी. वो मन ही मन हंस रही थी. और उसने वो कहानी पूरी पढ़ी. शर्मीली भाभी का किरदार सविता भाभी से भी रोचक था इसलिए उसकी चूत गर्म हो गई. उसने एक बार अपनी चूत को सहलाया और फिर वो किताब को रख के नहाने के लिए चली गई.
वो नहा के आई तो मैं उसके पीछे बाथरूम में घुसा. जानबूझ के मैं तोवेल नहीं ले गया अपने साथ. मैंने अनेरी की पेंटी देखी और उसे सूंघी. नाजुक चूत की खुसबू सूंघी और मेरे लंड में तूफ़ान आ गया. मैंने शावर ओन किया और नहाने लगा. फिर पांच मिनिट के बाद्द मैंने अपने लंड के ऊपर साबुन लगा के हलकी सी मुठ मार के लंड को एकदम कडक कर लिया.
फिर मैंने आवाज लगाईं, अनेरी प्लीज़ तोवेल देना मुझे.
वो शायद बाल ही सुखा रही थी अपने. मेरी आवाज सुन के वो तोवेल ले के आई. उसने हलके से नोक किया दरवाजे को और बोली, जीजू.
मैंने दरवाजे को ऐसे खोला की वो मेरे नंगे बदन और लंड दोनों को देख सके. उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी और उसने मुहं फेर लिया और अपने हाथ को अन्दर कर के तोवेल देने लगी. मैंने हिम्मत कर के उसके हाथ को पकड़ा और वो मुझे देखने लगी. उसकी आँखों में बहुत कुछ था, शायद वासना भी!
मैंने और हिम्मत कर के उसे बाथरूम में खिंच लिया. वो बोली, जीजू मैं भीग जाउंगी. दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पे पढ़ रहे है।
मैंने कुछ नहीं बोला और उसे अपने बदन से लगा के उसके होंठो को चूसने लगा. वो छटपटाइ लेकिन मेरी गिरफ्त से निकलने नहीं दिया मैंने उसे. वो अपने बूब्स के भीगने को देख रही थी और मैं उसके होंठो को जोर जोर से चूसने लगा. एक मिनिट तक उसका आखरी संघर्ष चला. और फिर उसके हाथ मेरी कमर के ऊपर आ गए. वो मुझे अपनी तरफ खिंच रही थी. मैंने उसे दिवार से लगा दिया और उसके होंठो को चूसते हुए उसके पतले गाउन के ऊपर से उसकी जवान चूचियां मसलने लगा. मेरा लंड एकदम खड़ा था और उसकी चूत के बहुत ऊपर था. मैं हाईट में उस से काफी लम्बा था इसलिए मेरा लंड उसकी छाती के निचे टच हो रहा था. अनेरी की गांड पर हाथ दबा के मैंने उसके एस चिक्स को खोला और दोनों बम्स को प्यार से मसल दिए.
मेरे होंठो के ऊपर मेरी इस जवान साली की सिसकियों का अहसास हुआ. मैंने अपने होंठो को अब उसके लिप्स से हटा के उसकी छाती के ऊपर रखा. बूब्स के ऊपर के हिस्से को चूसते हुए मैंने उसकी कमर में हाथ को लगा दिए और वो भी अह्ह्ह्ह अह्ह्ह कर के चुदास का अहसास करवा रही थी. मैंने उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया. वो लंड को मुठ्ठी में ऐसे दबा रही थी जैसे किसी ने बड़े काम की चीज दे दी थी उसे.
फिर मैंने उसके गाउन को फाड़ ही दिया. उसने ब्रा नहीं पहनी थी. फिर मैंने उसके स्कर्ट को भी फाड़ा और अंदर की पेंटी को भी. फिर उसे दिवार पकड़ा के खड़ा कर दिया. हमारे ठीक ऊपर शावर था और उसके पानी के फ़ोर्स से मेरी आँखे बंद हो रही थी इसलिए मैंने उसे एकदम स्लो कर दिया. अनेरी का मुहं दिवार की साइड कर के मैं निचे बैठा और उसकी जांघो के पिछले हिस्से के ऊपर अपने गर्म होंठो का अहसास दिया उसे. वो सिहर उठी और मैंने उसकी दोनों जांघो को हाथ में पकड़ के हिलाई. वो चुदास के मारे अह्ह्ह अह्ह्ह्ह करती रही. मैंने अपने हाथो को और ऊपर किया और गांड के निचे के हिस्से को दबाया. वो मस्तिया गई. मैंने उसके एस चिक्स को खोला. उसकी गांड चिकनी थी और स्लाईट ब्राउन रंग का होल था उसका. मैंने साबुन हाथ में ले के उसकी गांड पर लगाया. शोवर का पानी उसे अपनेआप धोने लगा. अनेरी थिरक उठी. उसकी ये पहली चुदाई थी शायद.

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